सर्द रातों में पहाड़ी गाँव और भी ज्यादा शांत हो जाते हैं। ऐसा ही एक छोटा सा गाँव था ‘चंद्रगढ़’। दिन के समय यह गाँव जीवन से भरा रहता था, लेकिन सूरज ढलते ही एक अजीब सी खामोशी छा जाती थी। गाँव के बाहर एक पुरानी डाक बंगला था, जहाँ कई सालों से कोई नहीं रहता था। कहा जाता था कि वहाँ कुछ अजीब घटनाएँ होती हैं।
राहुल, एक नए लेखक, हाल ही में अपनी नई किताब की कहानी ढूँढ रहे थे। बचपन से ही उन्हें भूतिया कहानियों का बहुत शौक था। ग्रामीण कहानियाँ उन्हें हमेशा आकर्षित करती थीं। इसलिए वह चंद्रगढ़ आकर उसी वीरान डाक बंगले में ठहरे।
पहली रात का आगमन
पहला दिन काफी सामान्य बीता। उन्होंने गाँव के कुछ लोगों से मुलाकात की। वे सभी बहुत मिलनसार थे, लेकिन जैसे ही डाक बंगले की बात आई, उनके चेहरे गंभीर हो गए। कोई भी इस बारे में विस्तार से बात नहीं करना चाहता था। बस एक बूढ़े आदमी ने कहा, "बाबू जी, संभल कर रहिए, रात को वहाँ से अजीब आवाजें आती हैं।"
राहुल ने इसे महज़ अफवाह समझकर नज़रअंदाज़ कर दिया। शाम होते ही उन्होंने अपना लैपटॉप निकाला और लिखना शुरू कर दिया। अचानक हवा जैसे थम गई। आसपास के जंगल से झींगुरों की आवाज़ भी बंद हो गई। जैसे पूरा वातावरण ही स्थिर हो गया हो। फिर दरवाज़े के पास कुछ हलचल हुई।
'ठक! ठक!'
वह धीरे-धीरे दरवाज़े की ओर बढ़े। दरवाज़े की दरार से बाहर झाँककर देखा, वहाँ कुछ भी नहीं था। सिर्फ़ रात का गहरा अंधेरा और ठंडी हवा का झोंका।
रहस्य गहराने लगा
अगले कुछ दिनों तक कुछ न कुछ अजीब होता रहा। कभी दरवाज़ा खुद-ब-खुद खुल जाता, कभी रात के समय किसी के पैरों की आहट सुनाई देती। एक रात, उन्होंने फिर से उसी छायामूर्ति को खिड़की के पास देखा। इस बार उन्होंने हिम्मत करके खिड़की खोली। तभी एक धीमी आवाज़ आई,
“तुम यहाँ क्यों आए हो?”
राहुल का शरीर सिहर उठा। उन्होंने कुछ देर खड़े रहकर हिम्मत जुटाई। फिर गाँव के बुजुर्गों से डाक बंगले का इतिहास जानने के लिए गए।
अतीत की अनकही कहानी
गाँव के एक बुजुर्ग चाचा बोले, “इस बंगले में एक समय एक अंग्रेज़ साहब रहते थे। उनका नाम विलियम ग्रांट था। वह यहाँ अकेले रहते थे और रात में अजीब शोध किया करते थे। एक दिन वह रहस्यमय तरीके से गायब हो गए। तब से कई लोगों ने यहाँ अजीब चीज़ें देखी हैं। लेकिन उसने कभी किसी को नुकसान नहीं पहुँचाया।”
गाँव के लोग मानते थे कि विलियम की आत्मा अभी भी बंगले में भटक रही है। कुछ कहते थे कि रात में बंगले की खिड़कियों में रोशनी जलती और बुझती है। अजीब आवाज़ें आती हैं, जैसे कोई बात कर रहा हो।
हिम्मत की परीक्षा
राहुल ने तय किया कि वह एक और रात वहाँ रुकेंगे। रात होते ही वही आवाज़ फिर सुनाई दी,
“मेरी कहानी लिखोगे?”
राहुल समझ गए कि यह आत्मा सिर्फ़ अपनी कहानी सुनाना चाहती है। उन्होंने हिम्मत करके कहा, "तुम कौन हो? अपनी कहानी बताना चाहते हो?"
अचानक एक अजीब हवा कमरे में बहने लगी। खिड़की के काँच पर हाथों के निशान पड़ गए। उसी रात, राहुल ने पूरी कहानी लिख डाली।
रहस्य का अंत
सुबह होते ही वह डाक बंगला छोड़कर गाँव की एक दुकान में गए और कागज़ पर लिखकर छोड़ दिया, “जो भी यहाँ आए, डरना मत। वह सिर्फ़ अपनी कहानी सुनाना चाहता है।”
उसके बाद से डाक बंगले में कभी कोई भूतिया घटना नहीं घटी। लेकिन रात के अंधेरे में अब भी कई लोग कहते हैं कि कोई खिड़की के पास खड़ा है, अपनी कहानी सुनाने के इंतजार में।
अस्वीकरण: यह कहानी काल्पनिक है, वास्तविकता से इसका कोई संबंध नहीं है।

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