Hindi Chudail Ki Kahani: डायन गाँव का रहस्य



सीतानगर एक शांत और सुरम्य गाँव था। हरे-भरे धान के खेत और बहती नदी की कलकल ध्वनि इस गाँव को एक मनोरम माहौल प्रदान करते थे। लेकिन गाँव के बीचोंबीच एक विशाल बरगद का पेड़ था, जिसे लेकर कई रहस्य और दंतकथाएँ प्रचलित थीं। गाँव के बुजुर्गों का कहना था कि इस पेड़ की छाया में कोई भी सूर्यास्त के बाद जाता तो उसे अजीब अनुभव होते। और इस पेड़ से जुड़ी हुई थी एक कुख्यात डायन, मालती की कहानी।

डायन मालती का श्राप

लगभग एक सदी पहले, इसी गाँव में मालती नाम की एक युवती रहती थी। वह अद्भुत रूपवती थी, लेकिन उससे भी ज्यादा मशहूर थी उसकी अजीब आदतों के लिए। जब गाँव की अन्य लड़कियाँ घरेलू कामों में व्यस्त रहतीं, तब मालती अकेले जंगल में चली जाती। वहाँ वह घंटों बिताती। गाँववालों का कहना था कि वह पेड़ों और पक्षियों से बातें करती थी। धीरे-धीरे लोगों को संदेह होने लगा कि मालती कोई साधारण लड़की नहीं, बल्कि एक डायन है!

उसी समय गाँव के एक धनी जमींदार का बेटा, हरिदास, अचानक एक दिन लापता हो गया। पूरे दिन ढूंढने के बाद भी उसका कोई पता नहीं चला। फिर गाँव की एक वृद्धा ने बताया कि उसने रात के अंधेरे में मालती को बरगद के पेड़ के नीचे कुछ जप करते हुए देखा था। गुस्से में गाँववालों ने तय किया कि मालती को पकड़कर उससे सवाल किया जाएगा।

दोषी साबित होने और मालती का दर्दनाक अंत

उसी रात मालती को उसके घर से घसीटकर बरगद के पेड़ के नीचे लाया गया। कुछ लोग चिल्ला रहे थे, "यह लड़की डायन है! यह हमारे गाँव को श्राप दे रही है!"

मालती रोते हुए बोली, "मैं निर्दोष हूँ! मैंने किसी का कोई नुकसान नहीं किया!"

लेकिन किसी ने उसकी बात नहीं सुनी। गुस्से और डर से बेकाबू हुए गाँववालों ने उसे पेड़ से बांध दिया। रात के गहरे अंधेरे में किसी ने चीख सुनी, लेकिन सुबह जब लोग वहाँ पहुँचे तो देखा कि मालती अब इस दुनिया में नहीं थी।

उसकी मृत्यु के बाद, लोगों ने दावा किया कि रात में पेड़ के नीचे किसी के रोने की आवाज सुनाई देती थी। अचानक ठंडी हवा चलती, और पेड़ की पत्तियाँ अजीब तरीके से कांपने लगतीं। कुछ लोगों ने तो यहाँ तक कहा कि उन्होंने एक सफेद छाया को चलते हुए देखा।

एक सदी बाद रहस्यमयी घटनाएँ

समय के साथ गाँववालों ने मालती की कहानी को लगभग भुला दिया था। लेकिन एक रात गाँव के शिक्षक, मिस्टर चक्रवर्ती, गलती से उस पेड़ के पास चले गए। उन्होंने देखा कि अचानक हवा ठंडी हो गई, और तभी उन्होंने एक औरत के रोने की आवाज सुनी। उनका शरीर डर से काँप उठा। उन्होंने चारों ओर देखा लेकिन वहाँ कोई नहीं था। हालाँकि, उन्होंने पेड़ की छाया में एक धुंधला आकृति देखी।

अगले दिन उन्होंने यह बात गाँव के मुखिया को बताई। बुजुर्ग हँसकर बोले, "ये सब तुम्हारी कल्पना है! भूत-प्रेत जैसी बातों पर विश्वास नहीं करना चाहिए।"

लेकिन कहानी यहीं खत्म नहीं हुई। इसके बाद कई लोग कहने लगे कि रात में पेड़ के पास जाने पर उन्हें अजीब आवाजें सुनाई देती हैं। कुछ ने कानाफूसी सुनी, तो कुछ को ऐसा लगा जैसे कोई उन्हें देख रहा हो।

सच्चाई की तलाश

गाँव के युवक सौरभ और उसके दोस्त इस रहस्य को सुलझाने का फैसला करते हैं। वे एक रात बरगद के पेड़ के नीचे बैठकर इंतजार करने लगे। रात गहराने लगी, और अचानक ठंडी हवा बहने लगी।

पेड़ की पत्तियों के बीच उन्होंने देखा कि एक सफेद आकृति धीरे-धीरे स्पष्ट हो रही है। वे सब भयभीत होकर स्तब्ध रह गए। तभी वह छायामूर्ति बोली, "मैं मालती हूँ... मुझे गलत समझा गया था... मेरी आत्मा अभी भी मुक्त नहीं हुई..."

सौरभ काँपते हुए बोला, "तुम क्या चाहती हो?"

एक धीमी आवाज आई, "सच्चाई उजागर करो... मुझे मुक्ति दो..."

इसके बाद सौरभ और उसके दोस्तों ने तय किया कि वे गाँववालों को सच्चाई बताएँगे। अगली सुबह जब उन्होंने सब कुछ गाँववासियों को बताया, तो पहले तो किसी ने विश्वास नहीं किया। लेकिन उसके बाद से पेड़ के नीचे कोई अजीब घटना नहीं हुई।

अंतिम निष्कर्ष

आज भी यह कहानी सीतानगर के लोगों के दिलों में डर पैदा करती है, लेकिन कई लोग अब मानते हैं कि मालती वास्तव में निर्दोष थी, जिसे अन्यायपूर्वक मार दिया गया था। उसकी आत्मा मुक्ति चाहती थी, और सौरभ तथा उसके दोस्तों ने वह सच्चाई सबके सामने लाई।

अब भी कभी-कभी, जब कोई अकेला राहगीर उस बरगद के पेड़ के पास खड़ा होता है, तो हल्की हवा के साथ कानों में फुसफुसाहट सुनाई देती है—"मैं मालती हूँ... मेरे साथ अन्याय हुआ था..."

डिस्क्लेमर: यह कहानी पूरी तरह से काल्पनिक है। इसका वास्तविकता से कोई संबंध नहीं है।

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